सोशल मीडिया पर भक्तों की प्रजाति: चेतन भगत

Jul 09, 2015, 06:58 AM IST (Chetan Bhagat's
Article In Dainik Bhaskar)

देश में इंटरनेट और सोशल मीडिया के उदय से एक विशिष्ट खोज हुई है। यह खोज है अलग से नज़र आने वाली सायबर प्रजाति की मौजूदगी, जिसे ‘भक्त’ कहा जाता है। यह शब्द उन दक्षिणपंथी यूज़र अकाउंट्स के लिए उपयोग में लाया जाता है, जो सारी हिंदू चीजों के आक्रामक प्रशंसक हैं। राजनीतिक रूप से वे प्राय: भाजपा का समर्थन करते हैं, जो हिंदुत्व की ओर झुकाव रखने वाला दल है। भाजपा के सफलतम नेताओं में से एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए वे अत्यधिक संरक्षणवादी हैं। उन्हें प्राचीन काल के हिंदू राजा पसंद हैं और उन्हें ऐसे किस्से पसंद हैं कि कैसे भूतकाल में हिंदुओं को धोखा दिया गया। वे प्राय: ऐसी कहानियां ऑनलाइन शेयर करते देखे जा सकते हैं।

‘भक्त’ का यह लेबल लगभग किसी भी मोदी समर्थक पर लगा दिया जाता है, लेकिन सच्चे भक्त और सिर्फ मोदी के स्वच्छ भारत अभियान या उनकी कुछ नीतियों को पसंद करने वाले में बहुत बड़ा फर्क है। सच्चा भक्त तो श्रद्धालु होता है। भक्त और सिर्फ समर्थक वोटर होने में यही अंतर है। ये भक्त एंथ्रोपोलॉजी यानी मानववंश शास्त्र की अद्‌भुत घटना मानी जाते, यदि वे वक्त-बेवक्त टि्वटर पर उधम नहीं मचाते। कुछ साल पहले पत्रकार सागरिका घोष ने खुद पर सायबर हमले के बाद ‘इंटरनेट हिंदू’ शब्द गढ़ा था। कुछ हफ्ते पहले सच्चे भक्त की प्रजाति के लोगों ने खरा-खरा बोलने वाली एक महिला पर सायबर हमला कर दिया, जिन्हें प्रधानमंत्री समर्थित प्यारे व दोष रहित अभियान ‘बेटी के साथ सेल्फी’ निरर्थक लगता है। ये सच्चे भक्त हैं कौन? उनकी प्रेरणा क्या है? हम और खासतौर पर वे खुद अपनी बिरादरी को थोड़ा शांत बनाने के लिए क्या कर सकते हैं? इसके लिए उन्हें समझना महत्वपूर्ण है।

पहली बात तो यह है कि ये सच्चे भक्त हिंदू धर्मांध नहीं हैं। वे विश्व हिंदू परिषद के सदस्य भी नहीं हैं। उनमें से कुछ तो हिंदू हित से खुद को जोड़ते भी नहीं। वे खुद को राष्ट्रवादी कहते हैं। यदि आप उन पर भरोसा करें तो उनका घोषित उद्‌देश्य है राष्ट्र निर्माण और यह सुनिश्चित करना कि भारत अपना खोया वैभव फिर हासिल कर ले। वास्तव में न तो वे हिंदू योद्धा हैं और न राष्ट्रवादी। घिसी-पिटी बात दोहराने की कीमत पर मैं कहना चाहूंगा कि सच्चेे भक्त में ये चार लक्षण आम हैं। 1. वे लगभग सब के सब पुरुष हैं। 2. संवाद साधने का उनका कौशल, खासतौर पर अंगरेजी में, बहुत कमजोर है। इसके कारण उनमें इस बात का थोड़ा हीनभाव है कि तेजी से बदलती, वैश्विक दुनिया के अनुरूप उनमें पर्याप्त नफासत व व्यवहार कुशलता नहीं है।

तीसरी बात, आमतौर पर उनमें महिलाओं से बात करने का सलीका नहीं होता। ऐसे में महिलाओं से कैसे व्यवहार किया जाता है और कैसे उन्हें आकर्षित कर गर्लफ्रेंड बनाया जाता है, इसका उन्हें पता होने की संभावना नहीं है। उन्हें महिलाओं से निकटता की आकांक्षा तो है पर वे ऐसा कर नहीं पाते। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि वे यौन स्तर पर कुंठित हैं। 
चौथी बात, हिंदू होने, हिंदी बोलने या भारतीय होने में शर्म का गहरा भाव है। गहराई में उन्हें कहीं यह अहसास है कि देश का गरीबतम तबका हिंदी बोलने वाला हिंदू ही है। वे यह भी जानते हैं कि भारत तीसरी दुनिया का, तीसरी श्रेणी के आधारभूत ढांचे वाला देश है और विश्व स्तर पर खेल, विज्ञान, रक्षा या रचनात्मकता के क्षेत्र में उसकी कोई खास उपलब्धियां नहीं हैं। इस शर्म को छिपाने के लिए वे छाती-ठोक राष्ट्रवाद का सहारा लेते हैं। फिर उनके लिए भाजपा नेता और खासतौर पर नरेंद्र मोदी सबसे ऊंची प्रेरक हस्तियां हैं। मोदी हिंदू-हिंदी-साधारण साधन- वाली पृष्ठभूमि से है, जिसका उन्हें कोई रंज नहीं है।
वे इस बात का प्रतिनिधित्व करते हैं कि ऐसी पृष्ठभूमि के सर्वश्रेष्ठ लोग कैसे हो सकते हैं। चूंकि मोदी और उनकी कामयाबी सामने दिख रही है, सच्चे भक्तों के लिए खुश होने और यह महसूस करने का वाजिब कारण मौजूद है कि शीर्ष पर उनकी भी जगह है। इसलिए उनकी रक्षा करना उनके लिए महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि आपने देखा होगा कि सच्चे भक्त विभिन्न घोटालों में मोदी की चुप्पी का बचाव कर रहे हैं, यहां तक कि प्रधानमंत्री पर सवाल उठाने वाले किसी भी व्यक्ति पर पूरी ताकत से हमला बोल रहे हैं। जिस व्यक्ति का वह बचाव कर रहे हैं उसमें वस्तुनिष्ठता का कोई स्थान नहीं है। व्यक्तित्व पूजा को अपनी ही प्रजाति के व्यक्ति को आदर्श बनाने की तरह देखा जा रहा है। इस तरह कमजोर अंगरेजी, यौन कुंठा, अपनी पृष्ठभूमि पर शर्मिंदगी की भावना और हीनता से ग्रस्त भारतीय पुरुष सच्चा भक्त बन गया है या उसमें इसकी संभावना है।
असल में इसी कारण आत्मविश्वास से भरी, अंगरेजी बोलने वाली महिला को मोदी का विरोध करने पर सच्चे भक्त का सबसे खराब विरोध झेलना पड़ा, क्योंकि सारे बिंदुओं पर यह दुखती रख पर उंगली रखने जैसा था- आत्मविश्वास की कमी, यौन कुंठा और अपने आदर्श का बचाव करने की गहरी इच्छा। यह सब सतह पर उभर आया और गुस्से में बदल गया। चूंकि सोशल मीडिया में पहचान छिपाने की सहूलियत है, यह क्रोध व्यक्तिगत स्तर पर गाली-गलौज में व्यक्त हुआ। ध्यान दें कि भाजपा ने कभी इन सच्चे भक्तों को व्यक्ति-पूजा के लिए आमंत्रित नहीं किया। यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी उन्हें यह सब बंद करने को कहना पड़ा, क्योंकि वे भी इस अति-आक्रामक भक्ति से आज़िज आ चुके हैं।

बेशक, अंतत: किसी भी दल में सभी स्वतंत्र मतदाताओं का स्वागत ही होगा और भाजपा को इनसे परहेज नहीं है। हालांकि, भाजपा को इस बेलगाम टेस्टोस्टेरॉन (आक्रामकता पैदा करने वाला हार्मोन) से खुद को दूर कर लेना चाहिए। शुरू में जो समर्थन लगता है, वह जल्दी ही भद्‌दा लगने लगता है और पार्टी की कट्‌टरपंथी छवि को और मजबूत करता है। अंतत: भारतीय मतदाता घबरा जाएगा और फिर डिफॉल्ट पार्टी- कांग्रेस के पास चला जाएगा। इसी के कारण तो कांग्रेस ने साठ साल शासन किया और भाजपा ने हाल ही में सिर्फ छह साल का आंकड़ा पार किया है।

इस बीच हम क्या कर सकते हैं? सबसे अच्छा तो यही है कि सच्चे भक्तों को गंभीरता से न लें। बेशक, संवेदनशील लोगों के लिए व्यक्तिगत छींटाकशी की उपेक्षा करना कठिन होगा, लेकिन उसके पीछे उनका इरादा समझने का प्रयास करें। वे मोदी भक्त नहीं हैं; वे तो बस कुंठित और हीन ग्रंथि से ग्रस्त भारतीय पुरुष हैं। सच्चे भक्तों से भी मैं कहूंगा कि स्मार्ट बनो, अंगरेजी सीखो। कुछ महिला मित्र बनाएं और उनसे सलाह लें कि लड़कियों से कैसे बात की जाती है। जब आत्मविश्वास आ जाए तो किसी से डेटिंग का अनुरोध करें और जेंटलमैन की तरह उसे बाहर ले जाएं। कौन जानता है कि आपकी भी किस्मत चमक जाए। एक बार ऐसा हो जाए तो मेरा भरोसा कीजिए कि आपके पास ट्विटर पर गाली-गलौज से बेहतर कुछ करने के लिए होगा। गुड लक!

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